सुबह का इंतज़ार कर Poem by Sanjeev Kumar

सुबह का इंतज़ार कर

ग़म की अँधेरी रात में,
दिल ना यूँ बेक़रार कर,
सुबह जरुर आएगी,
सुबह का इंतज़ार कर.

जब आएगी सुबह तब,
इतनी होगी रोशनी,
जिसकी किसी ने ना,
कल्पना भी की होगी.

उजाले की चादर तुम,
ओढ़ लेना तब,
सवेरे का सूरज तुम्हे,
दर्शन देगा जब.

भूल ना जाना उन्हें,
जो साथ थे तुम्हारे,
अंधियारों की गलियों में,
क्यूँ बने थे वो सहारे.

ले लेना साथ उनको,
बढ़ा लेना हर कदम,
हर एक सांस साथ हो,
ना जाने कब निकले दम.

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Persistence pays off.

Copyright © 2012 Sanjeev Kumar
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Sanjeev Kumar

Sanjeev Kumar

Jamshedpur, India
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