पयादे से मात Poem by Aftab Alam

पयादे से मात

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• पयादे से मात / आफ़ताब आलम'दरवेश'

मकानों में ऎसे रहतें हैं
जैसे की हम नहीं रह्ते ।

चीख और कराह सुन कर देखा
खुले दरवाजे बन्द होते।

भय की करतूत तो देखिये
पडोसी नहीं सोते तो हम भी नहीं सोते//

जगमगाती रंगीनियों में कह-कहे लगानेवाले
अन्त समय में अपने भी कांधा नहीं देते।

बुद्धिमान प्राणीं की बुद्धि तो देखिये
आम की फ़िराक में हैं कैसे बबूल बोते ।

सतरंजी दुनिया के बाद्शाह, वजीर, किश्ती,
हमनें देखा है पयादे से मात होते।///

Saturday, September 20, 2014
Topic(s) of this poem: teacher
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Aftab Alam

Aftab Alam

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