इश्के रसूल Poem by Aftab Alam

इश्के रसूल

Rating: 5.0

इश्के रसूल/

इश्के खुदा, इश्के रसूल,
मेरा वसूल-मेरा वसूल,
मेरा वसूल-मेरा वसूल/
खाक में मिलने वालो सोंचो,
क्या है वजूद-क्या है वजूद//
क्यों आए इस धरा पे हम,
सोंचो कर लो आंखे नम,
खिदमते खल्क, बड़ा हुनर,
होगा देखो दुआ कबूल//
इश्के खुदा, इश्के रसूल,
मेरा वसूल, मेरा वसूल.....

‘दीन और दुनिया' के रहबर,
रुक गए क्यों भला यूँ रहपर,
सीधी रह पर चलें अब हम,
फिर बरसेंगे हम पर फूल//
इश्के खुदा, इश्के रसूल,
मेरा वसूल, मेरा वसूल, //.....
आफ़ताब आलम'दरवेश'

Friday, September 19, 2014
Topic(s) of this poem: advice
COMMENTS OF THE POEM
Md Asadullah 21 September 2014

Allah kare, Ishqe khuda, Ishqe rasool banjai har insann ka wasool, Ameen thanks for sharing :)

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Akhtar Jawad 19 September 2014

Jazak Allah, yeh muhabbat raigan nahin jaye gi, Insha Allah.

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