इतनी अर्ज़ी मंजूर कर दे Poem by Abhishek Singh Rathore

इतनी अर्ज़ी मंजूर कर दे

Rating: 5.0

या रब इतनी अर्ज़ी तो मेरी मंजूर कर दे
मुझे रंज औ गम की महफ़िल से अब दूर कर दे

इन पलकों पे अब कोई सुनहरे ख़्वाब न देना
मेरे जिम्मे किसी की मिल्किअत - ए - आब न देना
टूट हीं तो जाते है सारे, अरमां दिल के हीं भीतर
मेरे ह्रदय में भावनाओं की अब सैलाब न देना

मेरे ख़यालों के शीशें को तू चकनाचूर कर दे
मुझे रंज औ गम की महफ़िल से अब दूर कर दे

मेरे मुकद्दर ने मुझसे सबकुछ छीना है
कहा बंट कर टूकरो में हर पल अब मुझको जीना है
बनेगी गरल जिंदगी का अब हर एक लम्हा
समझ कर अमृत का प्याला इसे, मुझको पीना है

जिंदगी रुसवा हो जाये, मुझे इतना रंजूर कर दे
मुझे रंज औ गम की महफ़िल से अब दूर कर दे

Monday, September 1, 2014
Topic(s) of this poem: love and pain
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
कवी इस कविता में अपने दर्द को बयां करते हुए ये कहना चाहता है की हे भगवन! आज तक तुझसे जो कुछ भी माँगा मैंने तुमने नहीं दिया अब मुझे इस दुनिया से विदा लेने दे, मैं अब नहीं जीना चाहता तेरी बैरी दुनिया में |
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Abhishek Singh Rathore

Abhishek Singh Rathore

Muzaffarpur, Bihar
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