जीवन Poem by Shobha Khare

जीवन

जीवन मे दोनों आते है
मिट्टी के पल, सोने के क्षण,
जीवन से दोनों जाते है
पाने के पल, खोने के क्षण

हम जिस क्षण मे जो करते है,
हम बाध्य वही है करने को,
हँसने के क्षण पा कर हँसते,
रोते है पा रोने के क्षण,

विस्मृति की आई है बेला,
कर, पांथ, न इसकी अवहेला,
आ, भूले हास-रुदन दोनों
मिलकर होकर दो चार पहर! !

Sunday, August 31, 2014
Topic(s) of this poem: Life
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