जिस दिन मेरा नाम न होगा
उस दिन ही मै तर जाऊँगी
सपनों से छुटकारा पा कर
तुझ मे नया जन्म पाऊँगी
तूने जो कुछ लिखा भाग्य मे
उसे नहीं मैंने स्वीकारा
अपनी प्रज्ञा, अपने बल से
मै ने अपना भाग्य संवारा
कब तक अब ऐसे ही मुझको
भाग्य लेख निज लिखना होगा
विपदाओ मे जी कर मुझ को
उन से ऊपर उठना होगा II
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem