भाग्य Poem by Shobha Khare

भाग्य

जिस दिन मेरा नाम न होगा
उस दिन ही मै तर जाऊँगी
सपनों से छुटकारा पा कर
तुझ मे नया जन्म पाऊँगी

तूने जो कुछ लिखा भाग्य मे
उसे नहीं मैंने स्वीकारा
अपनी प्रज्ञा, अपने बल से
मै ने अपना भाग्य संवारा

कब तक अब ऐसे ही मुझको
भाग्य लेख निज लिखना होगा
विपदाओ मे जी कर मुझ को
उन से ऊपर उठना होगा II

Sunday, August 31, 2014
Topic(s) of this poem: Life
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success