आपकी यादों के साये सामने आते रहे....
गम के साज़ों पर ख़ुशी के गीत हम गाते रहे....
छोर आँचल का दबा मुंह में वो मुस्काना तेरा,
फेंक कर तीरे-नज़र पलकों का झुकजाना तेरा,
खिलखिलाकर भाग जाना ख्वाब बन आते रहे....
गम के साज़ों पर ख़ुशी के गीत हम गाते रहे....
ये किसे मालूम था ऐसे सितम ढाएँगे आप,
गैर की बांहों में बांहें डाले मिल जायेंगे आप,
हमने चाहा बच निकलना आप टकराते रहे....
गम के साज़ों पर ख़ुशी के गीत हम गाते रहे....
क्या खता थी आपने जो हमको यूं रुसवा किया,
इससे बढ़कर कौन सी होगी सज़ा ऐ साक़िया,
जिन्दगी कैसी यहाँ मरने को ललचाते रहे....
गम के साज़ों पर ख़ुशी के गीत हम गाते रहे....
कितने उलझे आपके ये गेसू पर सुलझे रहे,
और हम हसरत में सुलझन की सदा उलझे रहे,
बूँद को तरसे कि सागर आप छलकाते रहे....
गम के साज़ों पर ख़ुशी के गीत हम गाते रहे....
है नहीं उम्मीद हमको फिर बहार आये कभी,
सूखे मरुथल में क्या मौसम गुल खिला पाए कभी,
याद कर बीते लम्हों की दिल में दफनाते रहे....
गम के साज़ों पर ख़ुशी के गीत हम गाते रहे....
नाम कर दी आपके जागीर दिल के पास की,
जान वसीयत में लिखी देखो हमारी आशिकी,
आशिकों के आशियाने आप उठवाते रहे....
गम के साज़ों पर ख़ुशी के गीत हम गाते रहे....
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