जो मैंने जाना Poem by Lalit Kaira

जो मैंने जाना

मुझे मिला है
एक जीवन जीने के लिए
जिसमे में रोज मरता हूँ
और
एक जीवन मरने के लिए
जिसे मैंने कभी जिया ही नहीं

मुझ पर थोपा गया है
एक चेहरा दिखाने के लिए
जिसे आइना नहीं दिखाता
और
एक चेहरा छुपाने के लिए
जो मुझे रोज डराता है

Wednesday, April 22, 2015
Topic(s) of this poem: philosophy
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
Close
Error Success