कौन लूटने चला Poem by Lalit Kaira

कौन लूटने चला

आज मेरे प्यार को
महकती बयार को
खुशनुमा बहार को
कौन लूटने चला

खून सने फूल हैं
उफन रहे कूल हैं
उखड़ रहे चूल हैं
आज शांति के नगर
आ गया है जलजला
कौन लूटने चला


गले पड़ा हार है
पीठ पर प्रहार है
ह्रदय तार तार है
लड़ रहा हूँ रोज मैं
एक नया करबला
कौन लूटने चला

हाथ हाथ में दिए
प्रणय के वचन लिए
प्राण किंतु हर लिए
घात औ प्रतिघात का
अनवरत है सिलसिला

कौन लूटने चला

Monday, July 21, 2014
Topic(s) of this poem: love
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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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