सागर Poem by Shobha Khare

सागर

जितनी जिसकी पात्रता, उतना ही फल पाय
जैसे लोटे मे कभी, सागर नहीं समाय
हीरा रास्ते मे पड़ा, सबकी ठोकर खाय
बिना जौहरी रत्न भी, पत्थर समझा जाय
जिस हस्ती पर आपने, अब तक किया गुरूर
वो सागर मे बूंद से, ज्यादा नहीं हुज़ूर II

Monday, February 2, 2015
Topic(s) of this poem: Life
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