रात में ही जिन्दगी Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

रात में ही जिन्दगी

रात में ही जिन्दगी को तनहाई मिलती है,
कहीं भी कभी बेवफाई नहीं मिलती है,
जुल्मी जुल्फों - कालिमा से लजाती निशा,
इसी समय तो वह जी-भर अँगड़ाई लेती है

Friday, April 6, 2018
Topic(s) of this poem: love
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