प्रेम Poem by shivani gaur

प्रेम

Rating: 3.5

दो विपरीत ध्रुवों के बीच,
संतुलन नाप,
रस्सी पर झूलती नटनी,
गिरना जाने बिना संभलती है,
पार कर जाती है फासले
अंगूठे और ऊँगली के
बीच बैठी
खाली जगह के सहारे
बांच रक्खी हैं भाग्यारेखायें
प्रेम ने ।

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