आहात है अब हर मानव Poem by Nirvaan Babbar

आहात है अब हर मानव

आहात है अब हर मानव
आहात है अब हर मानव,
मानवता का, क्रंदन सब सुनते हैं,

पलकें भी हैं भारी - भारी,
पग - पग पर कांटे बिछते हैं,

श्वासों मैं जो भी स्पंदन है,
लगता है जैसे, इक बंधन है,

पर फिर भी हम ना हारे हैं,
सब सहकर भी हम जीवित है,

स्वप्न पराग का कण है, हर कण मैं,
हर श्वास को जागृत रखता हैं,

नभ के तारों को छूने की,
अविरल कोशिश ये करता है,

नवरंग अब भी हैं जीवन मैं,
पर यदा कदा ही दिखते हैं,

काल भ्रकुटी है ताने हुए,
हमें विचलित करने की कोशिश करता है,

चिंता के भाव तो हैं, चेहरे पर,
पर अंतर मन विजय को प्यासा है,

हम बड़ते रहेंगे विजय पथ पर,
अब यही शपथ हमारी है,

हमें मानव धर्म निभाना है,
अब काल का सर झुकाना है,

हमारा परिचय रहेगा, हर कण - कण से,
इसे विस्तृत, नभ तक ले जाना है,

उठा के सर, फिर जिएगी मानवता,
ऐसा होगा, होगा ये सब,

सब सुन लो ये गरज हमारी है,
हर मुख पर छा जाने वाली... ये अमर कथा हमारी है,

निर्वान बब्बर

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