हा तुम्हे, मैने रूलाया
मकसद न था तुझे रूलाने को
अनजान मेेैं यहीं भूल कर वैठा ।
अांसू जब तेरी नयन से टपका
दिल मेरा तब चुपके से रोया ।
पश्चाताप के अाग में बहुत जला
लेकिन ये सब तु देख न पाया ।
पीठ सहलाऊँ या जुल्फाे सहलाऊँ
ललात चुमू या नयन चुमू ।
नहीं अाया कुछ, समझ में मुझको
कैसे मेेैं, तुझ को चुप कराऊ।
मुझसे बढकर अधम ना कोई होगा
भूलकर भी अब मेैं तुझे रुलाता ।
बहती हइ तेरी प्रेम की गंगा
समझ न पाना ये मेेरी भूल था!
तुझे पाकर भी, तेरी प्यार को न समझ पाया
मजाक बन गया, मैं खुद मेरी किस्मत का ।
तेरी पीडा को मैं समझ न पाया
फिर भी खुद को आशिक कहलाया ।
तेरी तन और मन पर, मेैं हक जतातारहा
पर तेरी हक, मैं सदा कुचलतारहा ।
तेरी हिस्से का दर्द सब अब मेैं पिउगा
भूलकर भी तुझको कभी न तडपाउगा ।
सहन न होगा मुझ को नम अाँख तेरी
तु सदा मुस्कराते रहे यहीं अरमान मेरे दिल की ।
कैसे बताऊ प्रियतम मैं तुझ को
मेरी जिंदगी का वजह तुम हो ।
रचनाकार तुल्सी श्रेष्ठ
by Tulsi Shrestha
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अांसू जब तेरी नयन से टपका दिल मेरा तब चुपके से रोया । पश्चाताप के अाग में बहुत जला लेकिन ये सब तु देख न पाया ।.... // बहुत खूबसूरती से कवि ने स्त्री पुरुष अंतर-संबंधों को छुआ है और संप्रेषण की कमी से पैदा होने वाली ग़लतफ़हमी पर सफ़ाई प्रस्तुत की है. इसे हम हर जगह लागू कर सकते हैं. धन्यवाद.