माचिस की छोटी सी तिल्ली Poem by Kezia Kezia

माचिस की छोटी सी तिल्ली

Rating: 5.0

माचिस की छोटी सी तिल्ली

बेशुमार ऊर्जा भीतर समेटे हुए

कितनी रोशनी होती है उसमें

कितने होसले होते हैं उसमे

जो आग को लिये हुए भी

बेहद शांत होती है

जहाँ को फूँकने तक का सामर्थ्य

लिये होती है एक छोटी सी तिल्ली

थोड़ी सी रगड़ से

आपा खो देती है

चिंगारी बन जाती है

वो शांत सी दिखने वाली

एक माचिस की तिल्ली

जो यूँहि कहीं भी कोने मे पड़ी सोती है

जेब मे बेफिक्र लिये घुमते हैं

एक छोटी सी माचिस की तिल्ली

उजाले ही नहीं,

कई बार जिद पर अद जाये तो

घोर अंधेरे भी कर देती है

दीया ही नहीं चिता भी जलाती है

माचिस की एक छोटी सी तिल्ली

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Saturday, April 22, 2017
Topic(s) of this poem: philosophical
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 23 April 2017

आधुनिक हिंदी कविता का वही प्रगतिशील तेवर व प्रभाव- माचिस की तीली के हवाले से सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक धन्यवाद, मित्र.

1 0 Reply
Kezia Kezia 23 April 2017

कविता पसंद करने के धन्यवाद श्रीमान.

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