माचिस की छोटी सी तिल्ली
बेशुमार ऊर्जा भीतर समेटे हुए
कितनी रोशनी होती है उसमें
कितने होसले होते हैं उसमे
जो आग को लिये हुए भी
बेहद शांत होती है
जहाँ को फूँकने तक का सामर्थ्य
लिये होती है एक छोटी सी तिल्ली
थोड़ी सी रगड़ से
आपा खो देती है
चिंगारी बन जाती है
वो शांत सी दिखने वाली
एक माचिस की तिल्ली
जो यूँहि कहीं भी कोने मे पड़ी सोती है
जेब मे बेफिक्र लिये घुमते हैं
एक छोटी सी माचिस की तिल्ली
उजाले ही नहीं,
कई बार जिद पर अद जाये तो
घोर अंधेरे भी कर देती है
दीया ही नहीं चिता भी जलाती है
माचिस की एक छोटी सी तिल्ली
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आधुनिक हिंदी कविता का वही प्रगतिशील तेवर व प्रभाव- माचिस की तीली के हवाले से सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक धन्यवाद, मित्र.
कविता पसंद करने के धन्यवाद श्रीमान.