फिर एक दाग Poem by Sharad Bhatia

फिर एक दाग

Rating: 5.0

फिर एक दाग

आज फिर हिन्दुस्तान के माथे पर दाग लग गया
क्यूंकि एक और निर्भया का फिर से चीर हरण हो गया

क्यूँ भूल जाते हो तुम अपनी मर्यादा
क्यूँ भूल जाते हो कि तुमने भी किसी नारी के अंश से वंश लिया

क्या तुमने कभी अपनी माँ, बहन का चीरहरण किया
फिर क्यूँ तुम भूल जाते अपने संस्कार

जो बार - बार सिखाती माँ, तुम्हें जरा भी लाज नहीं आयी
जब तुम मेरे शरीर से कर रहे थे बलात्कार
क्या तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारी माँ, बहन की तस्वीर नहीं आई

मैने क्या बिगाडा था तुम्हारा
कि चंद काम वासना की खातिर तुम मुझे छील गए
मेरी जुबान को काट कर मुझे पूरा तोड़ गए

कहा गए वो संस्कार जो माँ ने सिखाये
चंद सुख की खातिर तुम मेरा कतरा - कतरा रोंद गए

अब कौन करे इंसाफ
अब कौन सी माँ जन्मे"लक्ष्मी "
अब वो भी डरेगी,
मुझे पैदा करने पर कँपेगी

Wednesday, September 30, 2020
Topic(s) of this poem: feeling,anger,sadness
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 01 October 2020

feel so sad at rape and brutal murder. no words to write... real 10 फांसी दो, फांसी दो गुरूवार, १ अक्टूबर २०२० जहां नारी असहाय है और जुल्म की बोलबाला है डॉ जाडीआ हसमुख

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M Asim Nehal 01 October 2020

बहुत सही कहा आपने वैसे तो हम दावा करते हैं कि हम चांद पर पहुंच गए और कुछ ही समय में मंगलयान और मंगल पर भी फतेह पा लेंगे लेकिन अफसोस यह सब किस काम का जब हम अपनी मां और बहनों के सम्मान के लिए कुछ भी नहीं कर सकते यह बड़े दुख की बात है और हमें मिलकर सोचना चाहिए । 100***

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Varsha M 30 September 2020

Apne samaj ka kadwa saach ki aab asise bhi loog baag hain jo maryada jante he nahi. Very well reflected social evil eating our society. Thank-you.

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Rajnish Manga 30 September 2020

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा प्रशासन और सरकार द्वारा कितनी गंभीरता से अमल में लाया जा रहा है, किसी से छुपा नहीं है. न ही सोच बदलने की दिशा में कोई पहल या प्रगति दिखाई देती है. यही कारन है की सब कुछ पहले की भांति जारी है. आपने पूरे देश की ओर से व्यक्त किये गए उदगार के लिए आभारी हम सब आभारी है.

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