खेलावति बाल, सुलावति लोरी गाई सुनाई,
बहारति भवन औ आँगन लिपावति है।
आनति जल कूपन सँ, दुहावति क्षीर गायन के,
मटकन महँ भरि भरि माखन मथावति है।।
भोजन बनाय पवावति परिकर अनुचरन,
अँग-बदन अन्हवाय, सब बसन धुलावति है।
बसैं घनश्याम नयन, नाम लेत अँसुवन बरसैं,
वृन्दावन ब्रजगोपिन की'नवीन'शरणागति है।
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