युगल पद नूपुर भरत मधुर रव Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

युगल पद नूपुर भरत मधुर रव

युगल पद नूपुर भरत मधुर रव,
चहुँ ओर दमकत दिव्य प्रकाश है।
आलिंगित तन सिमिटि समाई जात,
कपोल अधर मिलि, करत महारास है।।
रति सुख होत, श्याम उर महँ समाई जात,
केश गहि विनाशत काम सकल त्रास है।
हे सखि! बेगि मिलाउ, अब मुरारी पियवर,
'नवीन' उन छोड़, और कछु नहिं आश है।।
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Tuesday, March 21, 2017
Topic(s) of this poem: love
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