युगल पद नूपुर भरत मधुर रव,
चहुँ ओर दमकत दिव्य प्रकाश है।
आलिंगित तन सिमिटि समाई जात,
कपोल अधर मिलि, करत महारास है।।
रति सुख होत, श्याम उर महँ समाई जात,
केश गहि विनाशत काम सकल त्रास है।
हे सखि! बेगि मिलाउ, अब मुरारी पियवर,
'नवीन' उन छोड़, और कछु नहिं आश है।।
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