प्रेम प्रसंग Poem by C. P. Sharma

प्रेम प्रसंग

ये प्रेम बहुत है अटपटा
हो जाए भक्त लटपटा
मीरा को जब विष दिया
उसने जैसे अमृत पिया

ये प्रेम मंथन भी बहुत
अजीब -ओ -गरीब है
किसी को अमृत मिले
किसी का विष नसीब है

जिस का सच्चा प्रेम है
सर्प उसे डसे नहीं
महाकाल को काल सर्प
कभी ग्रसे नहीं

प्रेम में वो शक्ति है जो
प्रचंड वेग समेट ले
गंगा के प्रवाह को एक
सलिल सरिता रूप दे

भक्ति प्रेम रूप में
थोड़ा बहुत तो बहो तुम
ध्रुव, प्रह्लाद की तरह
थोड़ा बहुत तो सहो तुम

संसार के अंगार भी
हो जाएँ क़ालीन मख़मली
प्यार कर तो देखो तुम
इस की ख़ुश्बू हो गली गली

Pic courtesy: Bobita Saikia

प्रेम प्रसंग
Monday, February 27, 2017
Topic(s) of this poem: devotion,love
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C. P. Sharma

C. P. Sharma

Bissau, Rajasthan
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