खिलने दें Poem by Alfaz Ajnabi

Alfaz Ajnabi

Alfaz Ajnabi

VPO. Banawali Teh/distt. Fatehabad (Haryana)

खिलने दें

आओ दिल से दिल मिला कर देंखे, रुखसारो को खिलने दें !
चलो चाँद को जमीं पर लायें और उन सितारों को खिलने दें!
तितलियों के पीछे भागे, भंवरों सा हम गुनगुनाये -
आओ सावन को बुला के लाये और बहारो को खिलने दें!
आईना लेकर निहारे जिन्दगी तन्हाई के किसी कोने में -
खुशियों में समेटे गम को, बस हंसी -फुहारों को खिलने दें!
मोहब्बत की तालीम सीखे मिल कर, लफ्जों को इतना इल्म दें -
मंदिर-मस्जिद घर में बना कर, घर की दीवारों को खिलने दें!
सागर किनारे बैठे दो पल, यादों संग खूब बतियाते हैं -
आओ 'अजनबी' हम करें दोस्ती, छिछोरेपन के नजारो को खिलने दें! !
चलो चाँद को जमीं पर लायें और उन सितारों को खिलने दें!

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