ओ जाने वफ़ा तूने मुझको भुला डाला Poem by NADIR HASNAIN

ओ जाने वफ़ा तूने मुझको भुला डाला

ओ जाने वफ़ा तूने मुझको भुला डाला
हमने तो हंसाया था तूने रुला डाला
मैं ज़िंदा रहूँगा अब कैसे ज़माने में
मुझे ग़म के समंदर में तूने गिरा डाला
ओ जाने वफ़ा तूने....................

मुझे प्यार के बदले में तूने तो दिया ग़म है
तेरी याद में रो रो कर मेरी आँख हुई नम है
हम दोनों ने मिल कर जो साथ किया वादा
मैं कैसे भुलाऊँगा तूने है भुला डाला
ओ जाने वफ़ा तूने....................


तुझे ढूंढने की धुन में ठोकर भी बहोत खाया
मेरी जान मगर तुझको मैंने ना कहीं पाया
कोई कहता हूँ मैं पागल, कोई कहता दीवाना है
तूने तो मुझे ऐसा मजनू है बना डाला
ओ जाने वफ़ा तूने....................


ख़ुश कितने थे हम रहते एक साथ जो रहते हम
करते थे ख़तम कैसे एक बार में सारे ग़म
तेरी देख कर सूरत को मुझे रौशनी मिलती थी
होकर के जुदा तूने उसको भी बुझा डाला
ओ जाने वफ़ा तूने....................


मक़सद था तेरा गर ये मुझको ही भुला जाना
बस करके मेरे दिल में मुझको ही रुला जाना
फिर आई भला थी क्यों, तुम मेरे फ़साने में
तूने तो मोहब्बत को खिलवाड़ बना डाला
ओ जाने वफ़ा तूने....................

BY: नादिर हसनैन

Thursday, February 16, 2017
Topic(s) of this poem: song
COMMENTS OF THE POEM
Abhilasha Bhatt 17 February 2017

A beautiful poetry....loved it :)

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