Original Poem: Did I Not Say To You
By Maulana Jalaluddin Rumi
Translation: क्या मैंने नहीं कहा?
By Mohammed Asim Nehal
क्या मैंने नहीं कहा था? वहां मत जाना
मैं तुम्हारा मित्र हूँ, इस विनाशी मृगतृष्णा में
मैं जीवन की आशा हूँ
क्रोध में तुम सय्यम खो कर वर्षों तक भटकते हो
फिर भी अंततः वापस मुझ तक आते हो
मैं जीवन का लक्ष्य हूँ
क्या मैंने नहीं कहा? यह संसार मोह और माया है
रहना ज़रा तुम इससे बचकर, सिर्फ मैं हूँ संतोष की परिभाषा
क्या मैंने नहीं कहा? मैं एक समंदर हूँ
और तुम केवल एक मत्स्य उसमें तैरती हुई
मत जाना तुम मुझ से बहार
मैं तुम्हारा जीवन हूँ.
क्या मैंने नहीं कहा? कि पक्षियों की तरह
जाल में मत फस जाना! आओ मेरी तरफ
की मैं तुम्हारी शक्ति हूँ, इन पंख की इन पाँव की
क्या मैंने नहीं कहा? वे तुम्हारी ताक में है
सर्दी की तरह जमा देंगे
और मैं हूँ गर्मी, तुम्हारी इच्छा में जोश भरने वाली
क्या मैंने नहीं कहा? की वे तुम्हारे अंदर
बुराई का प्रत्यारोपण कर देंगे
और ये भुलाने की कोशिश भी करेंगे की मैं
पवित्रता का स्रोत हूँ
क्या मैंने नहीं कहा? ये मत कहो की किस दिशा से
नौकर के मामलों में आदेश आते हैं
मैं निर्माता हूँ बिना आदेशों का
अगर तुम चराग हो दिलों का
तो ये पता करो ये सड़क किस घर तक जाती है?
और अगर तुम में दिव्य शक्ति है
तो मैं तुम्हारा सर्वस्व हूँ
Han kaha tha bas ham bhool jaate hain jo parampita parmeshwar kehte hain....adbhut rachna.... :)