कन्या Poem by Ajay Srivastava

कन्या

अपनी आखो से क्या देखते हो।
एक बार मेरी आखो से भी देखो।
प्यारी सी मासूम कली दिखती हूँ में ।
थोड़ी सी चंचल भी हु मै।
यू न मुझे रोको, यु न सोचो।
तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब हु मै।
यु ना बेबस व लाचार समझो मुझे।
तुम्हारी ही अस्तित्व हु मै।
स्वयं निर्बल नहीं हो तो।

क्योकर मुझे निर्बल समझने की भूल करते हो।
क्योकर अपने अस्तित्व को नकारते हो।
क्योकर भूल जाते हो में तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब हूँ मै।
क्योकर सच से भागना चाहते हो, सच को तो स्वीकार करना ही है।

केवल और केवल एक बार मेरी आखो से देखो।
सारा का सारा विश्वास एक पल में वापस आ जाएगा।
सारा का सारा डर व चिंता पल भर में ही भाग जायेगा।
अपनी आखो की उदासी कुछ ही पल में चमक में बदल जाएगी।
ज्यादा नहीं मेरी आखो को अपना समझ लो, मेरे बल का अनुभव मेरी आँखे करा देगी।

कन्या
Saturday, July 30, 2016
Topic(s) of this poem: daughters
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