बेशर्म Poem by Ajay Srivastava

बेशर्म

गंदगी फैलने में।
रिश्वत लेने में।
अभद्र भाषा प्रयोग करने में।
कानून को तोड़ने में।
भेद भाव करने में।
जाती धर्म के नाम पर लड़वाने में।
फिक्सिंग करने में।
अनैतिक कार्य करने में।

कभी तो, कही तो कुछ तो शर्म कर लो।

ये बेशर्म कौन से लोक की वासी है।

इसका गुरुकुल का जन्म कहा हुआ है।
बहुत ही सफल बेशर्म गुरुकुल है।

बेशर्म
Monday, June 27, 2016
Topic(s) of this poem: shame
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