आरम्भ करो मंज़िल को पाने का सफर. Poem by M. Asim Nehal

आरम्भ करो मंज़िल को पाने का सफर.

Rating: 5.0

बेशक, हाथों में कार्य कई होंगे
और इतने की आप करने का सोच भी न सको
और अक्सर रास्ते दुर्गम भी लगे
और पहाड़ियों की चढ़ाई , बहुत ऊंची

लेकिन ये याद रहे, ये जो पहाड़ हैं
वो इतने ऊंचे भी नहीं जितने नज़र आते हैं
और ये जो विश्वास है ना आपके दिल में ये इनसे कई ऊंचा है
चुनाँचे चढ़ते रहो और आरम्भ करो मंज़िल को पाने का सफर.

जीवन में कुछ भी असम्भव नहीं
ना ही योग्य है सफतला के सिवाय
बशर्त आप में कोशिश करने का साहस हो
और ये विशवास की आप ये कर सकते हैं.

विश्वास एक एसी शक्ति है जो
ज्ञान, ताक़त और कौशल को मात देती है
और हर हारी बाज़ी को जीत में बदल देती है
बशर्त आप भगवन के ज्ञान और इच्छा में विश्वास रखते हो

विश्वास से असम्भव भी संभव हो जाते हैं
क्यूंकि एसा कुछ भी नहीं जो भगवन न कर सके
तो सोचते क्या हो , मन में विश्वास जगाओ
और आरम्भ करो मंज़िल को पाने का सफर.

This is a translation of the poem Climb 'Til Your Dream Comes True by Helen Steiner Rice
Monday, July 4, 2016
Topic(s) of this poem: uplifting
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Original poem in English by Helen Steiner Rice Titled: Climb 'Til Your Dream Comes True
Translated in Hindi By M. Asim Nehal
Titled: आरम्भ करो मंज़िल को पाने का सफर.
COMMENTS OF THE POEM
T Rajan Evol 06 July 2016

Badiya translation kiya hai Asimji ne. Ati Uttam.10

1 0 Reply
Aarzoo Mehek 05 July 2016

Nothing is impossible only if you think you can. Awesome translation of this poem, loved reading every bit of the poem. Keep writing and keep sharing your beautiful thoughts.10 Eid ki mubarakbaad.

1 0 Reply
Akhtar Jawad 05 July 2016

Carry on till your dreams come true, a beautiful translation.

1 0 Reply
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