साज Poem by Ajay Srivastava

साज

तन तन कर यू न रहा करो|
रह रह कर राह की लोच को समझा करो|
न कम न ज्यादा सन्तुलन को बनाया करो|
गति को अहिस्ता अहिस्ता बडाया करो

तन पर उगलीयो को थीरकने दिया करो|
रागे से दिल का मिलन कराया करो|
नदान तारो को रस मे डूब जाने दिया करो|
गरिमा को बडने का अवसर दिया करो|

तभी तो सुर, रसो का आन्नद ले सकेगे|
नम दिल को, गरमाहाट का अहसास हो सकेगा|

Sunday, July 3, 2016
Topic(s) of this poem: music
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Ajay Srivastava

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