सूरज, चाँद, धरती सा दोस्त न देखा, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

सूरज, चाँद, धरती सा दोस्त न देखा,

सूरज, चाँद, धरती सा दोस्त न देखा,

जुदा रहने पर भी न आई जुदाई की रेखा,
जब भी चाँदनी की जगह देखे आँसू,
सूरज को अहले -सुबह पोछते देखा।

Wednesday, January 30, 2019
Topic(s) of this poem: love
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