मुक्ति दे......... मुक्ति दे Poem by NADIR HASNAIN

मुक्ति दे......... मुक्ति दे

मेरी ज़िंदगानी अधूरी कहानी ये बंजर जवानी तू आबाद करदे
मोहब्बत की ज़ंजीर में क़ैद हूँ मैं तुझे वास्ता रब का आज़ाद करदे
मुक्ति दे......... मुक्ति दे....... मुक्ति दे............ मुक्ति दे

दिल हिचकोला खाए जवानी मेरी ढलती जाए
हवा में चुनरी जो लहराए समझ में कुछ न मेरी आए
तेरे बिन सूना है संसार न कोई हमदम न ग़मख़ार
सनम ना कोई मेरा यार इनायत तेरी है दरकार

मुक्ति दे......... मुक्ति दे....... मुक्ति दे............ मुक्ति दे

दिल का हुआ है तंदूर गरम बैरी सताए बिरहा की जलन
मैं राँझा हीर तू मेरा ज़मीर तू पयासी ज़िंदगानी मीठा है नीर तू
मेरा जूनून है दिल का सकून है होली क रंग में भी मेरा अबीर तू
करले पेयार का तू इज़हार मुक्ति दे............ मुक्ति दे

ये कैसी है ख़ुदाई घटा घनघोर छायी
इश्क मझदार में है लबों पे जान आई
तुही मुश्किल कुशा है मेरा तू आसरा है
तेरी परवाज़ शांहिं तुही बादे सबा है
लगा कर मेरी नैया पार मुक्ति दे............ मुक्ति दे

फसल जलने लगी है नदी तालाब सुखा
करम की हो निगाहें पयसा हूँ मैं भूका
गुज़ारिश है ये मेरी तुही इन्साफ करदे
क़फ़स में क़ैद हूँ मैं मुझे आज़ाद करदे
बरसे बारिश मुसलाधार मुक्ति दे............ मुक्ति दे

: नादिर हसनैन

मुक्ति दे......... मुक्ति दे
Saturday, August 8, 2015
Topic(s) of this poem: love and friendship
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