अहसास का आन्नद Poem by Ajay Srivastava

अहसास का आन्नद

रूप अनेक है |
हर रूप मे समरूपता है |
समरूपता की दिशा एक है |
विशवास की लो है |

वो नही रखता अंधविशवास की चाहत |
न ही उसको विशवास की चाहत |
वो तो केवल और केवल निशचल प्रेम-भाव की चाहत रखता है |
वो तो बहुँत शीध्र ही सबको अपनाने की चाहत रखते है |

आधुनिकता के पुजारी |
विज्ञानं के अनुयायी |
स्वतंत्रता के भक्त |
स्वय की इंद्रियों को नित्रयण कर ले |
उसके बनाये नियम तोड़ता है |
कम से कम अपने बनाए नियम तो तोडना बंद कर |
निर्दोष प्राणी के जीवन समय की स्वतंत्रता तो समझ|
ऐ बुद्धिमान मनुष्य कब समझेगा स्वतन्त्रता का सही अर्थ |

उसको पाना है तो सदकर्मो को अपना ले |
उसकेे असतित्व को देखना है तो उसकी रचना को स्वीकार कर लेे |
स्वय को स्वय बना ले उसके बनाए नियम तोडना छोड दे |
उसकी हर रचना जीवन समय निशचित है इस नियम को तोडना छोड दे |
फिर देख उसका असतित्व व उससे साक्षात्कार करने का अहसास का आन्नद ले |

अहसास का आन्नद
Friday, March 11, 2016
Topic(s) of this poem: spirituality
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