गुरु जी हमारे हमें पास करदो Poem by NADIR HASNAIN

गुरु जी हमारे हमें पास करदो

हुई जो ख़ता है उसे माफ़ करदो
गुरु जी हमारे हमें पास करदो
गुरु जी हमारे हमें पास करदो

सुबह सुबह जागते थे जाते स्कूल
खाना पीना याद रहा बाक़ी गए भूल

बस्ते में लेके आते थाली घर से
खिचड़ी पे ध्यान था पढ़ाई डर से

आप तो क्लास कभी आते नहीं थे
पूछो तो कुछ भी बताते नहीं थे

मील के ही डील में पढ़ाया कुछ नहीं
आज मेहरबानी कुछ ख़ास करदो
गुरु जी हमारे हमें पास करदो


बाग़ में शादाबी है या सूखा है शजर
कौन पूछता है ये है किसको ख़बर

हाथ में है खैनी और मुंह में है पान
आप के लिए ही खुली चाय की दुकान

आप का ये ज्ञान रंग लाएगा ज़रूर
पास होकर बनूँगा मैं बंधुआ मज़दूर
सेवक हूँ आपका मैं आप का है राज
ख़ूब करवाया सर जी बॉडी का मसाज

आप शिक्छा का सत्तेयानास करदो
गुरु जी हमारे हमें पास करदो

आप का है साथ इतिहास रचूंगा
अंगूठा छाप आठवीं में पास करूँगा

है माले ग़नीमत को पाने की होड़
भला कौन देता पढाई पे ज़ोर

अटेंडेंस देखो सौपरसेंट है
ग़ैरहाज़िर रजिस्टर में प्रजेंट है

दाल में ना पानी थी पानी में दाल
ऐसे ही सब्ज़ी का रहता है हाल

खाने खिलाने का चरचा है आम
होटल है लगता स्कूली मुक़ाम

लिखना या पढ़ना हमें कौन सिखाता
आप मेरे साथ इन्साफ करदो
गुरु जी हमारे हमें पास करदो

गुरु जी हमारे हमें पास करदो
Saturday, January 23, 2016
Topic(s) of this poem: sadness
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