महगाई Poem by Ajay Srivastava

महगाई

हर कोई है तुम्हारी बेल की तरह बडती हुई ऊंचाई से तनाव में है
पर हर कोई चाहता है तुमहे थामना पर तुम पर किसी कोई नही सुनती
यहाँ तक दिल जान से चाहने वाले प्रेमी रिज़र्व बैंक
का भी तुम पर ना के बराबर प्रभाव है बार बार समझाने प्रयास करता है
पर तुम हो की मानती नही बेल के वृक्ष की तरह बडती जा रही हो ना टूटती नही हो 11
न तुम्हारा योवन कम होता बल्कि और निखार आ रहा है
योवन और निखार को कम किया जाऐ कोई तो उपाय बताऔ
शांति और राहत का अहसास हो 11
रूक जाना रूक जाना ऐ महगाई थम थम के बड
हमारी जेब है बहुत निराश है हमेशा खाली रहने से 11
हमारी नही तो अपने प्रेमी की बात मान ले 11

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