घर्म Poem by Ajay Srivastava

घर्म

वही है सबका प्रिय`|
उसी मे हम अपने आप ढूडते है|

वही है सब का हितकारी|
उसी मे हम अपना हित पाते हित पाते है|

वही है सबका मार्गदर्शक|
उसी की दिखाई राह पर हम चलते है|

वही है सबका स्वाभिमान|
उसी मे है सब पा जाते है सम्मान|

वही है सबका पालनकर्ता`|
|उसी का सब पालन करने का प्रयास करते है|

वही है तेरा, मेरा और हम सबका घर्म|

घर्म
Tuesday, December 22, 2015
Topic(s) of this poem: religion
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success