कड़कती ठंड या फिर कड़कती धुप में
सीमाओ की रक्षा करने वालो जवानो से पूछो|
अकारण हिंसा के शिकार
जन समूहों के परिवार वालो से पूछो|
सच्चाई और नियम की राह पर
चलने वालो से पूछो|
हर रोज का भोजन के लिए
मेहनत करने वालो से पूछो|
आसमान छूती मेह्गाई
झेलने वाले सामान्य जन से पूछो|
हम इसको कितने दिन तक सह सकते है
क्या दर्द है क्या समाधान कर सकते है?
धनवानों और सामर्थ्यवान लोगो
की चिंता करने वाले उन प्रचार तंत्र से पूछो|
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem