महंगाई (भोजपुरी रचना) Poem by Upendra Singh 'suman'

महंगाई (भोजपुरी रचना)

उफरि परय एइसन महंगाई
छिनय मुंह क निवाला हरजाई|
उफरि परय एइसन महंगाई|
लागल बजरिया में आग मोरे भईया|
देखत-देखत उडी जाला रूपईया|
हड़पि जाले इ पिया क कमाई|
उफरि परय एइसन महंगाई|
अबहीं त पड़ल हउये सगरो महीनवां|
बीतल बा मुश्किल से चारी-छः दिनवां|
झपटि लिहल सब पाई-पाई|
उफरि परय एइसन महंगाई|
तार-तार भईलंय तन प कपड़ा आ लत्ता|
खींचति बा बबुनी क देखा हो दुपट्टा|
करावति बा इ जगहँसाई|
उफरि परय एइसन महंगाई|
डेरवावे धमकावे बोले ले बोली|
मारे ले छिनरी करेजवा प गोली|
हउवे इ बजर क कसाई|
उफरि परय एइसन महंगाई|
कईलय सपनवां इ होली-दीवाली|
खींचति बा बचवन के अगवां क थाली|
देखा तनि एकर हो ढिठाई|
उफरि परय एइसन महंगाई|
सुरसा नियर ससुरी बढ़ावति बा काया|
बड़ी जानमार हउवे एकर हो माया|
दिहलय अरमान सब मिटाई|
उफरि परय एइसन महंगाई|
राजनीति संघवां कमर लचाकवेले|
हमरी औकतिया के ठेंगा देखावेले|
बत्थति बा एकर हो मोटाई|
उफरि परय एइसन महंगाई|
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Tuesday, December 1, 2015
Topic(s) of this poem: life
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