श्रमदेव तुम्हारी जय हो Poem by Upendra Singh 'suman'

श्रमदेव तुम्हारी जय हो

श्रमदेव तुम्हारी जय हो,
श्रमदेव तुम्हारी जय हो,
छल-प्रपंच की इस दुनिया में,
श्रम की सदा विजय हो.
श्रम सार्थक सत्य अभय हो.
श्रमदेव तुम्हारी जय हो.............

खून-पसीना एक करें सब.
दुनिया श्रमजीवीमय हो.
आलस्य भगे दुःख की क्षय हो.
श्रमदेव तुम्हारी जय हो..............

उ.सिं 'सुमन'

Saturday, November 28, 2015
Topic(s) of this poem: works
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