क्यों Poem by Ajay Srivastava

क्यों

सौंदर्य से भरपूर प्रकृति चारो तरफ हरयाली बिखेरती।
ना किसी से उसका मूल्यों का अवलोकन करने को कहती।
छितिज को छू मानो हम से कहती मेरी सम्पदा का आनद उठा लो।

अन्नत सम्पदा का भंडार अपने में समाये हुए प्रकृति ।

बस इतना कहती नाहक ही मेरा असंतुलन क्यों करते हो?
स्वय मेरी और अपनी हानि क्यों कर लेते हो?
आधुनिकता के नाम पर जंगल के जगल क्यों साफ कर देते हो?
क्यों निमंत्रण दे देते हो बाढ़, सूखे व् भूकम्प का?
हे मनुष्यो भला बताओ तो सही
'मेरी प्राकृतिक सुंदरता से क्यों तुम नफरत करते हो'?

क्यों
Wednesday, November 18, 2015
Topic(s) of this poem: nature
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