भ्रष्टाचार का जाल Poem by ANKIT REMBO

भ्रष्टाचार का जाल

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आओ सुनाऊँ देश का हाल
कैसा बिछा यहाँ भ्रष्टाचार का जाल

एक बार मै बनवाने गया प्रमाण पत्र निवास

बाबु बोला निकाल रूपये पचास

मिनटों में निवास तुम्हारे हाथ होगा

चक्कर काटने वाली ना कोई बात होगा

मैंने कहा मेरे दिए टैक्स से मिलती है तुम्हे तनख्वाह

क्यों परेशान कर रहे हो मांग कर रूपये बेवजह

गुस्से में उसने बोला तुम मुझको सिखा रहे हो

रिश्वत का बना नियम यहाँ, क्यों अपनी मति लगा रहे हो

अगर नहीं मिला मुझको रूपये पचास

कूड़ेदान में जायेगी तुम्हारी आवेदन निवास

मैंने कहा तुम्हारी अधिकारी से करूँगा शिकायत

फिर बैठेगी तुमपर पंचायत

उसने कहा एक हिस्सा अधिकारी को भी जाता है

वही तो हमको वसूली का टारगेट बताता है

मैंने कहा आपने अभी जो बात कही है

उसकी एक विडियो बन गई है

हाथ जोड़कर खड़ा हो गया सामने

गिडगिडाते लगा माफ़ी मांगने

पांच मिनट में सील और साइन करा लाया

निवास को थरथराते मेरे हाथ थमाया

Friday, October 9, 2015
Topic(s) of this poem: creation,hearing
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