कला के देवी Poem by Raj Reader

कला के देवी

कला के देवी सुनो जरा
वो मन मैं छुपा था
दिखा नहीं मन मैं अँधेरा था
सूरज और बादल के तलें जब तरसते रहे
थोड़ासा शांति के लिए
दिखा एक हाट
बरसो पहले छुए था

कला के देवी
Thursday, September 12, 2019
Topic(s) of this poem: verse
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