Nirvaan Babbar Poems

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41.
अपनी फितरत है (Apni Fitrat Hai)

ऐतबार कर बैठे हम, आदत है, यारब अपनी फितरत है,
कर दिए वादे उसने कुछ ऐसे, जिन्हें ना निभाना उसकी आदत है,

बे-वजह मौत का डर बसा रखा है, अपनी फितरत मैं,
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42.
ख़ाक (KHAK)

ज़मीं है यार दोज़क ये, कहाँ गुलज़ार होती है,
लम्हों कि ये कहानी है, पलों मैं ख़ाक होती है,

हवा के पुलिंदों पर, हवा से तस्वीर बुनते हैं,
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43.
मैं (MAI)

मैं लड़ता हूँ, झगड़ता हूँ, ख़ुद से ख़फ़ा मैं यार रहता हूँ,
इस बे - दर्द ज़माने मैं, दर्द ख़ुद का मैं सहता हूँ,

ऐ वक़्त मुझ पे, ये क्या गुज़री, बयाँ मैं कर ना पाता हूँ,
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44.
Peace

PEACE HAS GONE AWAY FROM EVERY WHERE,
IT IS ABSENT FROM HEARTS, SOULS AND WHOLE WORLD,
WE ARE NOT HAPPY WITH WHAT WE GET,
HAPPINESS IS MISSING, PLACED SOME WHERE ELSE,
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ये सोच बड़ी प्रलंकारी है,
कहाँ, किसी के लिए, हितकारी है,
ये निशि है ऐसी, जो है रक्त से रंजित,
ऐ इंसान तेरी काल की ये निशानी है,
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46.
दिल की सरहद (DIL KI SARHAD)

दिल की सरहद, कभी किसी को, मिली नहीं,
क्या करें, क्या नहीं, कुछ भी किसी को, सूझे नहीं,

इश्क जज़्बा है, जो वक़्त का मोहताज नहीं,
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मैं कहूँ तो कहूँ क्या मेरी ज़िन्दगी,
अब तो खुशियाँ मेरी बन गई दास्ताँ,
अब तो हर इक नज़र गैर है ज़िन्दगी,
आग दिल मैं मेरे आज भी जल रही,
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48.
ये परबत राज हिमालय है

ये परबत राज हिमालय है,
आँचल हिम का ओढे है ये,
दुर्गम उचाई जो इसमें है,
कहाँ, किधर और किस मैं है,
...

मैं तेरे नाम से ही, जी रहा हूँ यहाँ,
तू नहीं तो सनम मैं चला, ये चला,

सांसें मेरी है तुझ मैं ही, तुझ मैं बस्ती है मेरी जाँ,
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50.
आहात है अब हर मानव

आहात है अब हर मानव
आहात है अब हर मानव,
मानवता का, क्रंदन सब सुनते हैं,
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