Nirvaan Babbar Poems

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अनंत अपार है दृष्टिकोण,
श्रितिज तो बस शुरुवात है,

हम तो बस एक तीर हैं,
...

प्रेम सुधा, तो पी ली तुमने, मदमस्त पवन सा, स्वयं को कर डालो,
अब तो हृदय से, विचार, विचारों,

जीवन जिसमें गरल मिला है, उसको अब, अमृत कर डालो,
...

आज फिर दुनिया की जीत हुई और किस्मत से मेरी हार हुई,
ऐ ज़िन्दगी ये इक बार नहीं, कुदरत से ये हर बार हुआ,

टूटा तार अम्बर से जो, धरती तक पहुँचकर ख़ाक हुआ,
...

आकाश से टूटे तारों को, लोग क्यों,
किस्मत के तारे कहतें हैं,

बरखा के मौसम मैं क्यों कुछ लोग,
...

मैं एक वृक्ष का, सूखा पत्ता हूँ,
तेज़ पवन के झोकें से, टूट धरा पे आ गिरा,

कभी इधर गिरा, कभी उधर उड़ा,
...

16.

हम कोन हैं क्या हैं हम, चलो कुछ विचार करें,
अपने ही विचारों की थाह थामें, आज ये विचार करें,

विचार अपने हैं, हिमालय, याँ रेत, याँ गंग धार हैं,
...

जो सच है, उस सच को छुपाएँ कैसे,
सहा ज़ुल्म तो, ज़ुल्मत के निशाँ छुपाएँ कैसे,

वक़्त के साहिल पे बैठे, चाल वक़्त की देखा किए,
...

18.

ना हम बुज़दिल हैं, ना बुज़दिल थे कभी,
फिर भी ना जाने क्य़ों बुज़दिल कहे जाते हैं,
हम तो वो साहिल हैं जो,
तेज़ भाव के संग ही बहे जाते हैं,
...

दो घडी, बैठ, मेरे पास, मैं अकेला हूँ,
मेरे दर पे, बहुत है भीड़, तो भी तनहा हूँ,
ज़मी से आसमा तलक मैं, बस अकेला हूँ,
दिल की घहराइयों मैं भी, मैं तो तनहा हूँ,
...

ख़वाब जिन्दा अभी, जिन्दा हैं हम, ज़माने वालों,
फ़ना होना है तुम्हें, तो हो जाओ, ज़माने वालों,

हर तरफ़ जलवा है, अपना ही अपना, ज़माने वालों,
...

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