Kamal Deep Swami

Kamal Deep Swami Poems

घटा थी गुलजार की,
शबनम के होंठ की प्यास थी,
कांटो-सा तुफान समझा जिसे,
प्यारी-सी वो सावन की बरसात थी।
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The Best Poem Of Kamal Deep Swami

सावन की बरसात

घटा थी गुलजार की,
शबनम के होंठ की प्यास थी,
कांटो-सा तुफान समझा जिसे,
प्यारी-सी वो सावन की बरसात थी।
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ना दिन था ना रात थी,
वो मध्य की-सी बात थी,
खुदा ने सौंपा जो जहान मुझे,
पागलों कि वो हवालात थी।
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शर्माया तो बादल भी था,
बादलों कि वो लाज थी,
रस्ता जो चुना मैंने,
शरहदें मौत की बङी पास थी।
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घुंघट में छिपा था जो चहरा,
चान्द की-सी आगाज थी,
लाली चमन से झलक रही,
सरफिरों कि वो करामात थी।
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मायुस-सा चहरा था मगर,
खुशमिजाज-सी आवाज थी,
फिजा जिसने महका दी चमन कि,
प्यारी-सी वो सावन की बरसात थी।
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सुबह का मौसम था,
औंस में खिली फुलों कि मुसकान थी,
जहाँ मैंने पाया जमाना सारा,
वहाँ कब्रों कि बारात थी।
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बिजली जहाँ चमक उठी,
दो दिलो कि वो मुलाकात थी,
लोग थे आतुर देखने को जिसे,
प्यारी-सी वो सावन की बरसात थी।
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